নাৰিকনা যথৗঘন কানুন : संविधान की आत्मा पर चोट

दी0.2 की शुरुआत धमाकेदार रही। कश्मीर से धारा 370 हटा दी गई। कश्मीर को दो हिस्सों यानी लद्दाख और जम्मूकश्मीर को दो राज्यों में बांट कर दोनों को केंद्र शासित प्रदेश कर दिया गया। इस बीच राम मंदिर पर भी सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में दिया। यह देख आरएसएस और मोदी सरकार ने हिन्दुओं के वोटों की फसल काटने का सुनहरा मौका देखा और नागरिकता संशोधन कानून को लागू करा लिया। इसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेशके मुस्लिमों को छोड़ अन्य धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का निर्णय लिया गया है। यह कानून इसलिए भी गलत है कि हमारे देश को धर्मनिरपेक्षमानाजाता है। किसी एक धर्म के साथ चाहे वो मुस्लिमही क्यों नहो? इस तरह का व्यवहार नहीं कियाजासकता। यह संविधानप्रदत्त अधिकारोंसे इतर है। यह कानून नागरिकों के बीचसमानता के सविंधान के प्रावधान आर्टिकल-14काउल्लंघन तो है ही, इसके अलावा कई और कारणों से भी यह असंवैधानिक है। यह कानून नागरिकता देने के लिए धर्मको आधार ठहराता है। ऐसा करना संविधान की आत्मा को चोट पहुंचाना है। इस बात का कोई कानूनी तर्क नहीं है कि धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर ही नागरिकता दी जा सकती है। इस बात का भी ठोस तार्किक आधार नहीं है कि तीन ही देशों के लोगों को फास्ट ट्रैक तरीके से नागरिकताक्यों दी जारहीहै। असल में केवलप्रताड़ना किसी भी तरह की प्रताड़नासे बचाने के लिए अप्रवासियों को नागरिकता देने का प्रावधान होना चाहिए। प्रताड़ना की मौजूदा परिभाषा उसबुनियाद को नुकसान पहुंचाती है जिस पर भारत गणराज्य की नीवरखी गईथी।एक और बात यह है कि यह कानून सीधे तौर पर मुस्लिमों और हिन्दुओं के बीच दीवार को और मजबूत करने का काम कर रहा है। यानी समाज के बीच आपसी टकरावको उकसाने का काम कर रहा है। चूंकि यह कानून मोदी सरकार ने उताबली में पास किया, और इसकी प्रतिक्रिया के लिए मोदी सरकार तैयार नहीं थी तो इसका खमियाजा उन्हें उठाना पड़ा। देशभर में विरोध-प्रदर्शन का दौर चला। कांग्रेस जो कि देश में लगातार पतन की ओर जा रही थी, उसे दोबारा उठने का मौका मिल गया। सेकुलर और मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेसको भाजपासे बेहतर बताया और अब कांग्रेसदोबारासेजीने की राह पर चल निकली है। इसबीचमोदी सरकार ने दमन की नीति भी अपनाई, लेकिन इस नीति का अब तक अधिक असर नहीं दिखा है। देश में हर समय कहीं न कहीं, कोई न कोई नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहा है। जेएनयू में हाल में हुई हिंसा की घटनाकोभीइससे जोड़कर देखा जा रहा है। जानकारों की मानें तो मोदी सरकार इस मामले में भी घिरती नजर आ रही है कि वह पढ़ने के संस्थानों को चुन-चुन कर निशाना बना रही है। यदि यहां के बच्चे भाजपा विरोधी या मोदी विरोधी या सीएए-एनआरसी के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो उन्हें देशद्रोही नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने भी कहैया कुमार मामले में यही कहा है। विरोधसंविधान में अधिकार के रूप में दिया गया है। मान भी लेते हैं कि जेएनयू, अलीगढ़ मुस्लिम और जामिया के छात्र भटक गये हैं तो क्या हुआ? उन्हें सही राह पर लाने का काम होना चाहिए। बहस होनी चाहिए कि आखिर वो क्या चाहते हैं? आखिर हैं तो वो भारत के ही लाल।अपने बच्चों का सिर फोड़ कर या उनकी जान लेने का इरादारखकर हमलाकरवाना कहां तकतर्कसंगत है। एक ओर सरकार विदेशियों को देशका नागरिक बनाने के लिए जिद पर अड़ी है तो दूसरी ओर अपने देश के बच्चों को देशद्रोही साबित कर उनकीजानलेने पर तुली है, यह कहांका इंसाफ है? सीएए से भले ही किसी की नागरिकताको खतरा नहीं हो, लेकिन सीएए के प्रावधान पूरी तरह से बायस हैं और इसमें धर्म के आधार पर ही शरण देने का प्रावधान नहीं होना चाहिए था। दुनिया के तमाम मुस्लिम देशों में लाखों हिन्दूरहते हैं, यदि वहां की सरकार भी इनकोधर्म के आधार पर बेदखल कर देया वीजाही नहीं देतो फिर क्या हो? क्या हम प्रवासी भारतीयों को रोजगार और आश्रयदेने की क्षमता में हैं? यही विचारणीयहैशांत देशकोअशांत करने की कोशिशका विरोध होनाचाहिए। पीसीथपलियाल संपादक